नेतन्याहू

बंधक बचाओ या सत्ता बचाओ? नेतन्याहू के फैसले से मचा सियासी भूचाल, इसराइल में गूंजा सवाल!

पूरी कहानी जो आज हर इसराइली और फ़लस्तीनी की सांसों में उलझी है – एक रिपोर्ट जो झकझोर देगी।

यरूशलम |
क्या बिन्यामिन नेतन्याहू ने सत्ता की खातिर बंधकों की कुर्बानी दी?
मार्च में जब इसराइल और हमास के बीच एक प्रभावी युद्धविराम समझौता लागू था, तब अचानक प्रधानमंत्री नेतन्याहू पीछे हट गए। इस कदम को कुछ विश्लेषकों ने “राजनीतिक आत्महत्या” तक करार दिया।

इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप के नए कार्यकाल से पहले, उनके प्रतिनिधि स्टीव विटकॉफ़ की मध्यस्थता में जो शांति का रास्ता खुला था, उसने बंधकों की रिहाई की एक नई उम्मीद जगाई थी। इसराइली जेलों से सैकड़ों फ़लस्तीनियों की रिहाई के बदले में हमास ने दर्जनों बंधकों को छोड़ा भी।


लेकिन नेतन्याहू ने क्या किया?

जैसे ही लड़ाई थमने की ओर बढ़ रही थी, नेतन्याहू ने हमलों को फिर से शुरू करने का आदेश दे दिया।
उन्होंने ऐलान किया: “जब तक हमास पूरी तरह से खत्म नहीं होता, जंग जारी रहेगी!”

इस एलान से यह साफ हो गया कि ग़ज़ा में बचे बंधकों की सुरक्षित वापसी अब उनकी प्राथमिकता नहीं रही।


जनता में ग़ुस्सा क्यों?

  • बंधकों के परिवार ग़ुस्से में हैं
  • नेतन्याहू पर राजनीतिक स्वार्थ का आरोप
  • कहा गया कि उन्होंने बंधकों से ज़्यादा अपनी कुर्सी को बचाना चाहा

नेतन्याहू की गिरती लोकप्रियता

पिछले चुनाव में नेतन्याहू को बहुमत नहीं मिला।
कट्टर दक्षिणपंथी और धार्मिक दलों के सहयोग से उन्होंने सरकार बनाई।
अब जबकि उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बड़ी जीत का दावा किया है, वो समय से पहले चुनाव कराने की ओर इशारा कर रहे हैं।

लेकिन, यहीं खेल फंस गया…


चुनाव का जोखिम

  • मा’आरिव अख़बार के ताज़ा सर्वे में नेतन्याहू की पार्टी अकेले बहुमत से दूर
  • 59% इसराइली जनता चाहती है कि लड़ाई रोक कर बंधकों की रिहाई हो
  • दक्षिणपंथी दलों से समर्थन जुटाना भी मुश्किल
  • जनता का मानना: बंधकों की ज़िंदगी पहले, जंग बाद में!

नेतन्याहू की रणनीति

हाल ही में नेतन्याहू ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा:
“मेरे अभी कई मिशन बाकी हैं, और जब तक इसराइली जनता मुझे चाहती है, मैं रुकूंगा नहीं!”

उन्होंने संकेत दिए कि केवल वो ही हमास की हार और बंधकों की रिहाई सुनिश्चित कर सकते हैं, और इसके बाद एक व्यापक क्षेत्रीय शांति समझौता लाने की दिशा में बढ़ेंगे।

लेकिन सवाल अब भी वहीं है—
क्या नेतन्याहू वाकई शांति चाहते हैं, या सत्ता की आखिरी लड़ाई लड़ रहे हैं?


निष्कर्ष:

इसराइल एक चौराहे पर खड़ा है…
एक रास्ता शांति की ओर जाता है, दूसरा सत्ता के लिए अंधी लड़ाई की ओर।
नेतन्याहू किसे चुनते हैं, यह आने वाले हफ्तों में साफ होगा — लेकिन जनता का सब्र अब जवाब देने लगा है।

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