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कभी ₹100 में बेचा कॉटन, आज Panchayat 4 का ‘बिनोद’ बन जीता दिल

“गरीब हैं गद्दार नहीं…” Panchayat 4 का यह एक डायलॉग आज हर किसी की जुबान पर है। सचिव जी और प्रधान जी की चुनावी टेंशन के बीच ‘बिनोद’ का यह अंदाज़ एक बार फिर सोशल मीडिया पर छा गया है। ‘देख रहा है बिनोद’ से लेकर अब तक, फुलेरा गांव का यह किरदार हमारे दिलों में बस चुका है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्क्रीन पर दिखने वाला यह सीधा-सादा बिनोद, यानी एक्टर अशोक पाठक (Ashok Pathak), असल जिंदगी में कितना संघर्ष करके यहाँ तक पहुँचा है? उनकी कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। चलिए, आज आपको मिलवाते हैं पर्दे के पीछे के असली अशोक पाठक से।

जब पढ़ाई में नहीं लगता था मन, 100 रुपये के लिए बेचा कॉटन

आज अपनी एक्टिंग से सबको दीवाना बनाने वाले अशोक पाठक का मन कभी पढ़ाई में बिल्कुल नहीं लगता था। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि जब 9वीं क्लास में थे, तो अपना खर्चा चलाने के लिए उन्होंने कपास (Cotton) बेचने का काम किया, जिसके लिए उन्हें सिर्फ 100 रुपये मिलते थे।

हालात ऐसे थे कि 12वीं में उनके सिर्फ 40% मार्क्स आए। उन्हें लगा कि अब किसी अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिलना नामुमकिन है। बिहार से हरियाणा आकर बसे उनके परिवार के लिए यह एक मुश्किल दौर था, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

कॉलेज में थिएटर ने बदल दी Panchayat बिनोद की ज़िंदगी

जैसे-तैसे अशोक का एडमिशन लखनऊ के एक कॉलेज में हो गया। यहीं उनकी ज़िंदगी ने एक बड़ा मोड़ लिया। उन्हें पहली बार पता चला कि ‘थिएटर’ नाम की भी कोई दुनिया होती है। उन्होंने नाटकों और कल्चरल प्रोग्राम्स में हिस्सा लेना शुरू किया और उनकी एक्टिंग का जादू चलने लगा।

  • जब एक्टिंग की वजह से फीस हुई माफ: अशोक को एक के बाद एक कई एक्टिंग अवॉर्ड्स मिले। उनकी प्रतिभा को देखते हुए कॉलेज ने उनकी फीस माफ कर दी। यह उनके लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि उन्होंने 10वीं के बाद कभी अपने पिता से फीस के पैसे नहीं लिए थे। लगातार तीन साल तक वह कॉलेज के ‘बेस्ट एक्टर’ बने और यहीं से उन्होंने ठान लिया कि अब एक्टिंग में ही करियर बनाना है।
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Photo Credit : Instagram

बिहार की जड़ें और हरियाणा की परवरिश

भले ही ‘बिनोद’ (Binod) का किरदार उन्हें फुलेरा का बना देता हो, लेकिन अशोक पाठक का ताल्लुक बिहार से है। उनके पिता बेहतर रोजगार की तलाश में हरियाणा आ गए थे, और अशोक का जन्म और परवरिश फरीदाबाद व हिसार में हुई। वह कहते हैं कि उन पर बिहार और हरियाणा, दोनों की संस्कृतियों का गहरा असर है, जो उनकी एक्टिंग में भी झलकता है।

निष्कर्ष: मेहनत का फल ‘बिनोद’ है!

अशोक पाठक की कहानी हमें सिखाती है कि मार्क्स और डिग्रियां आपकी प्रतिभा को नहीं रोक सकतीं। जिस लड़के को लगता था कि उसका भविष्य अंधकार में है, आज उसी की एक्टिंग का पूरा देश दीवाना है। कपास बेचने से लेकर पंचायत (Panchayat) जैसे हिट शो का अहम हिस्सा बनने तक का उनका सफर वाकई प्रेरणादायक है।

अब आपकी बारी!
पंचायत वेब सीरीज में ‘बिनोद’ का आपका सबसे पसंदीदा सीन या डायलॉग कौन सा है? हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताइए। इस प्रेरणादायक कहानी को अपने दोस्तों और परिवार के साथ WhatsApp पर शेयर करना न भूलें

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