एक ऐसे कदम से जिसने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दो सबसे करीबी एशियाई सहयोगियों, जापान और दक्षिण कोरिया के खिलाफ एक नया व्यापारिक मोर्चा खोल दिया है। एक चौंकाने वाले ऐलान में, ट्रंप ने इन दोनों देशों से अमेरिका में आयात होने वाले सभी सामानों पर 25% का भारी-भरकम टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इस फैसले ने न केवल वैश्विक बाजारों में सुनामी ला दी है, बल्कि इसने अमेरिका की दशकों पुरानी विदेश नीति और उसके सहयोगियों के साथ संबंधों पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह ऐलान ट्रंप का ट्रेड वॉर का एक नया और शायद सबसे खतरनाक अध्याय है, क्योंकि इस बार निशाने पर चीन नहीं, बल्कि वो देश हैं जिन्हें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका का सबसे भरोसेमंद साथी माना जाता है। विशेषज्ञ इस कदम को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा और भू-राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ाने वाला मान रहे हैं। आइए, इस फैसले की गहराई में उतरते हैं और समझते हैं कि इसके पीछे की वजह क्या है और इसका दुनिया पर, खासकर भारत पर, क्या असर पड़ सकता है।
क्या है पूरा मामला और क्यों मचा है हड़कंप?
डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी “अमेरिका फर्स्ट” (America First) नीति को एक बार फिर केंद्र में लाते हुए यह घोषणा की। उनके बयान के मुताबिक, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश दशकों से अमेरिका का “अनुचित फायदा” उठाते आए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि ये देश अपनी मुद्राओं के साथ हेरफेर करते हैं, अमेरिकी उत्पादों पर भारी टैक्स लगाते हैं और अमेरिकी सैन्य सुरक्षा का लाभ उठाते हुए भी उसके लिए पर्याप्त भुगतान नहीं करते।
25% का यह टैरिफ कोई छोटी-मोटी चोट नहीं, बल्कि एक सीधा आर्थिक हमला है। इसका मतलब है कि जापान और दक्षिण कोरिया में बने उत्पादों, जैसे कार, इलेक्ट्रॉनिक्स, स्मार्टफोन और मशीनरी, की कीमतें अमेरिकी बाजार में नाटकीय रूप से बढ़ जाएंगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता लगभग खत्म हो जाएगी। यह कदम ट्रंप का ट्रेड वॉर के पिछले संस्करणों से कहीं ज्यादा गंभीर है क्योंकि यह उन सहयोगियों को निशाना बनाता है जो वैश्विक सप्लाई चेन का एक अभिन्न हिस्सा हैं।
ट्रंप ने क्यों उठाया यह कदम? ‘अमेरिका फर्स्ट’ का असली मतलब
ट्रंप के इस फैसले को समझने के लिए उनकी मूल विचारधारा को समझना जरूरी है। उनका मानना है कि वैश्विक व्यापार अमेरिका के लिए हमेशा से घाटे का सौदा रहा है।
- व्यापार घाटे को कम करना: ट्रंप का तर्क है कि अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया से जितना खरीदता है, उसकी तुलना में बहुत कम बेचता है, जिससे एक बड़ा व्यापार घाटा होता है। उनका मानना है कि यह टैरिफ अमेरिकी कंपनियों को एक समान अवसर देगा और घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देगा।
- नौकरियों की सुरक्षा: उनका दावा है कि इन देशों से सस्ते आयात के कारण अमेरिका में लाखों नौकरियां खत्म हो गई हैं। टैरिफ लगाकर, वह अमेरिकी कंपनियों को देश में ही उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं, जिससे अमेरिकी लोगों के लिए रोजगार पैदा होंगे।
- सैन्य खर्च का दबाव: ट्रंप लंबे समय से यह शिकायत करते रहे हैं कि अमेरिका जापान और दक्षिण कोरिया में अपने हजारों सैनिकों को तैनात रखने पर अरबों डॉलर खर्च करता है, जबकि ये देश अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त भुगतान नहीं करते। यह टैरिफ उन पर आर्थिक दबाव बनाने का एक तरीका हो सकता है।
किन उद्योगों पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?
इस टैरिफ का असर लगभग हर उद्योग पर पड़ेगा, लेकिन कुछ सेक्टर ऐसे हैं जो पूरी तरह से तबाह हो सकते हैं।
दक्षिण कोरिया: सैमसंग और हुंडई पर संकट
दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था निर्यात पर बहुत अधिक निर्भर है और अमेरिका उसका सबसे बड़ा बाजार है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स: सैमसंग (Samsung) और एलजी (LG) जैसी कंपनियों के स्मार्टफोन, टीवी, और घरेलू उपकरणों की कीमतें आसमान छू जाएंगी, जिससे एप्पल और अन्य अमेरिकी ब्रांडों को सीधा फायदा होगा।
- ऑटोमोबाइल: हुंडई (Hyundai) और किआ (Kia) जैसी कार निर्माता कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में टिकना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। उनकी कारों की लागत फोर्ड या जनरल मोटर्स की कारों से कहीं ज्यादा हो जाएगी।
जापान: टोयोटा से लेकर सोनी तक, हर कोई परेशान
जापान की तकनीकी और ऑटोमोटिव इंडस्ट्री इस फैसले से सीधे तौर पर प्रभावित होगी।
- ऑटोमोबाइल: टोयोटा (Toyota), होंडा (Honda) और निसान (Nissan) जैसी कंपनियां, जिनकी अमेरिका में भारी बिक्री है, सबसे ज्यादा नुकसान में रहेंगी।
- कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स: सोनी (Sony) के गेमिंग कंसोल (प्लेस्टेशन), कैमरा और पैनासोनिक (Panasonic) के अन्य उत्पादों पर भी इस टैरिफ की भारी मार पड़ेगी।
दुनिया पर क्या होगा इसका असर? एक नए आर्थिक संकट की आहट
यह फैसला सिर्फ अमेरिका, जापान और कोरिया तक सीमित नहीं रहेगा। इसके प्रभाव वैश्विक होंगे।
- वैश्विक बाजारों में गिरावट: इस घोषणा के तुरंत बाद दुनिया भर के शेयर बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिल सकती है, क्योंकि निवेशक एक नए और विनाशकारी ट्रेड वॉर से डर गए हैं।
- सप्लाई चेन का टूटना: आज की दुनिया में उत्पाद किसी एक देश में नहीं बनते। एक स्मार्टफोन के पार्ट्स दुनिया के अलग-अलग देशों से आते हैं। यह टैरिफ इस जटिल सप्लाई चेन को तोड़ देगा, जिससे उत्पादन लागत बढ़ेगी और हर चीज महंगी हो जाएगी।
- अमेरिका में महंगाई: भले ही यह कदम अमेरिकी उद्योगों की रक्षा के लिए उठाया गया हो, लेकिन इसका सीधा असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ेगा। कारों से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक, हर चीज महंगी हो जाएगी, जिससे अमेरिका में महंगाई बढ़ सकती है।
सबसे बड़ा विजेता कौन – चीन?
विडंबना यह है कि ट्रंप का ट्रेड वॉर का यह नया अध्याय, जिसका मकसद अमेरिका को मजबूत करना है, उसका सबसे बड़ा फायदा चीन को मिल सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम चीन के लिए एक अप्रत्याशित तोहफे जैसा है।
जब अमेरिका अपने सबसे करीबी और शक्तिशाली एशियाई सहयोगियों (जापान और दक्षिण कोरिया) को आर्थिक रूप से कमजोर करेगा और उनसे अपने रिश्ते खराब करेगा, तो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए बना अमेरिकी गठबंधन स्वाभाविक रूप से कमजोर हो जाएगा। यह चीन को इस क्षेत्र में अपना प्रभाव और भी तेजी से बढ़ाने का मौका देगा।
भारत के लिए क्या हैं इसके मायने? अवसर या आपदा?
इस वैश्विक उथल-पुथल के बीच भारत के लिए कुछ चुनौतियां हैं, तो कुछ अवसर भी छिपे हो सकते हैं।
- चुनौती: एक वैश्विक आर्थिक मंदी का खतरा भारत के निर्यात को भी प्रभावित कर सकता है। अगर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे से लड़ेंगी, तो इसका असर भारत की विकास दर पर भी पड़ना तय है।
- अवसर: यह भारत के लिए “मेक इन इंडिया” अभियान को तेज करने का एक सुनहरा मौका हो सकता है। जो अमेरिकी कंपनियां अब तक जापान और कोरिया से सामान खरीदती थीं, वे अब एक विश्वसनीय और सस्ते विकल्प की तलाश में भारत की ओर देख सकती हैं। भारत खुद को एक स्थिर और भरोसेमंद विनिर्माण केंद्र के रूप में पेश कर सकता है। हालांकि, इसके लिए भारत को अपने इंफ्रास्ट्रक्चर और कारोबारी माहौल में तेजी से सुधार करना होगा।
आगे क्या हो सकता है?
अब दुनिया की निगाहें इस पर हैं कि जापान और दक्षिण कोरिया इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं। वे चुपचाप इस फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे।
- जवाबी कार्रवाई: वे भी अमेरिकी उत्पादों पर भारी टैरिफ लगा सकते हैं, जिससे एक पूर्ण ट्रेड वॉर शुरू हो जाएगा।
- कूटनीतिक दबाव: वे अन्य देशों के साथ मिलकर अमेरिका पर इस फैसले को वापस लेने के लिए कूटनीतिक दबाव बना सकते हैं।
- WTO में शिकायत: वे इस मामले को विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भी ले जा सकते हैं।
निष्कर्ष रूप में, डोनाल्ड ट्रंप का यह फैसला सिर्फ एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि एक भू-राजनीतिक भूचाल है। यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बनी उस व्यवस्था को चुनौती देता है, जो आपसी सहयोग और मुक्त व्यापार पर आधारित थी। ट्रंप का ट्रेड वॉर का यह कदम वैश्विक शक्ति संतुलन को बदल सकता है और दुनिया को एक अनिश्चित और खतरनाक भविष्य की ओर धकेल सकता है।