Donald Trump announces 10% tariff on BRICS countries

ब्रिक्स का साथ दिया तो खैर नहीं! ट्रंप की दुनिया को खुली धमकी- लगेगा 10% अतिरिक्त टैरिफ

एक बार फिर ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के साथ, डोनाल्ड ट्रंप ने वैश्विक कूटनीति में एक नया भूचाल ला दिया है। एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए, उन्होंने दुनिया भर के देशों को एक खुली और सीधी चेतावनी जारी की है, जिसने भारत जैसे देशों के लिए एक बेहद मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है। ट्रंप ने ऐलान किया है कि जो भी देश ब्रिक्स (BRICS) गठबंधन की अमेरिकी हितों के खिलाफ जाने वाली नीतियों का साथ देगा, उस पर 10% का अतिरिक्त टैरिफ लगाया जाएगा।

यह सिर्फ एक और व्यापारिक चेतावनी नहीं है, बल्कि एक ऐसा रणनीतिक कदम है जो देशों को अमेरिका और ब्रिक्स के बीच किसी एक को चुनने पर मजबूर कर सकता है। ट्रंप की ब्रिक्स को धमकी ऐसे समय में आई है जब 9 जुलाई की समय सीमा समाप्त हो चुकी है और अब 1 अगस्त से नए टैरिफ लागू होने वाले हैं। इस ऐलान ने वैश्विक व्यापार और कूटनीति के गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि इसका दुनिया और खासकर भारत पर क्या असर पड़ सकता है।

क्या है ट्रंप का नया फरमान?

डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर अपने चिर-परिचित आक्रामक अंदाज में लिखा, “कोई भी देश जो ब्रिक्स की अमेरिका-विरोधी नीतियों के साथ खुद को जोड़ेगा, उस पर अतिरिक्त 10% टैरिफ लगाया जाएगा। इस नीति का कोई अपवाद नहीं होगा।”

यह धमकी इसलिए भी गंभीर है क्योंकि यह सामान्य टैरिफ से अलग है। अमेरिका पहले से ही ज्यादातर व्यापारिक भागीदारों से आने वाले सामानों पर 10% टैरिफ लगा रहा है। यह नया ऐलान उस 10% के ऊपर एक और 10% का दंड है, जो विशेष रूप से उन देशों को निशाना बनाने के लिए है जो ब्रिक्स के साथ खड़े दिखाई देते हैं। ट्रंप लंबे समय से ब्रिक्स की आलोचना करते रहे हैं, एक ऐसा संगठन जिसमें चीन, रूस और भारत जैसे बड़े देश शामिल हैं।

डेडलाइन खत्म, अब ‘चिट्ठियों’ से दी जाएगी चेतावनी

अमेरिका ने पहले व्यापार समझौते करने के लिए 9 जुलाई की समय सीमा तय की थी, लेकिन अब अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि नए टैरिफ 1 अगस्त से लागू होंगे। ट्रंप ने कहा है कि वह उन देशों को पत्र भेजकर बताएंगे कि अगर कोई समझौता नहीं होता है तो उनकी नई टैरिफ दर क्या होगी।

सोमवार को अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने कहा कि वह “कुछ व्यस्त दिनों की उम्मीद कर रहे हैं।” उन्होंने सीएनबीसी को बताया, “बहुत से लोगों ने बातचीत के मामले में अपना रुख बदल लिया है। इसलिए कल रात मेरा मेलबॉक्स बहुत सारे नए प्रस्तावों और नए ऑफर्स से भरा हुआ था।”

ट्रंप ने यह भी स्पष्ट किया कि सोमवार को 10 से 15 देशों को पत्र भेजे जाएंगे, जिसमें उन्हें उनकी नई टैरिफ दर के बारे में सलाह दी जाएगी। बेसेंट के मुताबिक, इन पत्रों का सार यह है, “‘संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ व्यापार करने के लिए धन्यवाद। हम एक व्यापारिक भागीदार के रूप में आपका स्वागत करते हैं, और यह आपकी दर है, जब तक कि आप वापस आकर बातचीत करने की कोशिश नहीं करना चाहते।'” यह साफ तौर पर एक दबाव बनाने की रणनीति है।

क्यों भड़के हैं ट्रंप? ब्रिक्स की बढ़ती ताकत और आलोचना

ट्रंप की ब्रिक्स को धमकी के पीछे इस संगठन की बढ़ती ताकत और हालिया गतिविधियां एक बड़ी वजह हैं।

  • ब्रिक्स का विस्तार: ब्रिक्स अब सिर्फ ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका तक सीमित नहीं है। पिछले साल, इसमें मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को भी शामिल किया गया। यह गुट अब दुनिया की आधी से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, जो अमेरिका के प्रभुत्व के लिए एक सीधी चुनौती है।
  • अमेरिकी नीतियों की आलोचना: हाल ही में रियो डी जनेरियो में हुई दो दिवसीय बैठक के बाद, ब्रिक्स के वित्त मंत्रियों ने एक बयान जारी कर अमेरिकी टैरिफ नीतियों की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने इन टैरिफ को वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए खतरा और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में “अनिश्चितता” लाने वाला बताया था।
  • IMF में सुधार की मांग: ब्रिक्स देश अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे वैश्विक वित्तीय संस्थानों में सुधार और प्रमुख मुद्राओं के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव की भी मांग कर रहे हैं, जो सीधे तौर पर अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देता है।
  • अपनी मुद्रा का खतरा: 2024 में, ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर 100% टैरिफ की धमकी दी थी, अगर वे अमेरिकी डॉलर को टक्कर देने के लिए अपनी खुद की मुद्रा बनाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं।

भारत जैसे देशों के लिए क्या हैं इसके मायने?

यह नई धमकी भारत को एक बेहद नाजुक स्थिति में डालती है। भारत ब्रिक्स का एक संस्थापक और प्रमुख सदस्य है। वह ब्रिक्स के मंच से जारी होने वाले संयुक्त बयानों का हिस्सा रहा है, जिसमें अक्सर अमेरिकी नीतियों की आलोचना होती है।

  • कूटनीतिक दुविधा: अब भारत के सामने एक बड़ी दुविधा है। अगर वह ब्रिक्स के संयुक्त बयानों का समर्थन करता है, तो उस पर 10% अतिरिक्त टैरिफ का खतरा मंडरा सकता है। अगर वह ऐसा नहीं करता है, तो यह ब्रिक्स के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाएगा और रूस और चीन के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
  • व्यापार पर असर: अमेरिका भारत के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है। किसी भी तरह का अतिरिक्त टैरिफ भारतीय निर्यात के लिए विनाशकारी हो सकता है, जिससे भारतीय उद्योगों और अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान होगा।
  • रणनीतिक स्वायत्तता पर हमला: यह कदम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति या ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ पर सीधा हमला है। यह भारत को अपनी विदेश नीति के फैसले अमेरिकी हितों के दबाव में लेने के लिए मजबूर करने की एक कोशिश है।

चीन फैक्टर और दुनिया की मजबूरी

भले ही ट्रंप चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानते हों, लेकिन दुनिया के लिए चीन से व्यापारिक संबंध तोड़ना लगभग नामुमकिन है। इंटरनेशनल चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के डिप्टी सेक्रेटरी जनरल एंड्रयू विल्सन ने बीबीसी को बताया, “कई क्षेत्रों में चीन से दूर जाना व्यवहार में हासिल करना कहीं अधिक कठिन है।”

उन्होंने कहा, “आप कई क्षेत्रों में चीन के प्रभुत्व को देखें – ईवी, बैटरी और विशेष रूप से दुर्लभ खनिज और मैग्नेट, चीन के उत्पादन का कोई व्यवहार्य विकल्प नहीं है।” इसका मतलब है कि कई देश, चाहकर भी, चीन और ब्रिक्स से पूरी तरह अलग नहीं हो सकते, जिससे ट्रंप की धमकी को लागू करना और भी जटिल हो जाता है।

क्या ट्रंप की धमकियों का हो रहा है असर?

यह भी एक सच्चाई है कि ट्रंप की “टैरिफ डिप्लोमेसी” का कुछ असर दिख रहा है।

  • हुए समझौते: अमेरिका अब तक ब्रिटेन और वियतनाम के साथ व्यापार समझौते कर चुका है। चीन के साथ भी एक आंशिक समझौता हुआ है, जिसके तहत कुछ आयातों पर टैक्स 145% से घटाकर 30% कर दिया गया है।
  • यूरोपीय संघ के साथ बातचीत: यूरोपीय संघ (EU) भी अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए बातचीत कर रहा है। कुछ हफ्ते पहले ही ट्रंप ने यूरोपीय संघ को 50% टैक्स की धमकी दी थी। अब यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की ट्रंप के साथ “अच्छी बातचीत” हुई है, जो दबाव के आगे झुकने का संकेत हो सकता है।

यह स्पष्ट है कि डोनाल्ड ट्रंप अपनी शर्तों पर दुनिया के साथ व्यापारिक संबंधों को फिर से लिखने के लिए टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। ट्रंप की ब्रिक्स को धमकी इसी रणनीति का अगला चरण है। अब दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं कि भारत जैसे देश इस हाई-स्टेक डिप्लोमैटिक खेल में अपने हितों की रक्षा कैसे करते हैं और 1 अगस्त को क्या होता है।

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