Nimisha Priya

घड़ी की सुइयां चल पड़ी हैं… Yemen में भारतीय नर्स Nimisha Priya की फांसी की तारीख तय, क्या है उन्हें बचाने का आखिरी रास्ता?

युद्ध, अस्थिरता और कड़े शरिया कानूनों के लिए जाने जाने वाले देश यमन से एक ऐसी खबर आई है, जिसने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया है। केरल की रहने वाली भारतीय नर्स Nimisha Priya, जो पिछले कई सालों से यमन की जेल में मौत की सजा का सामना कर रही थीं, उनकी फांसी की तारीख मुकर्रर कर दी गई है। उन्हें बचाने के लिए अभियान चला रहे लोगों ने बीबीसी को जानकारी दी है कि 16 जुलाई, 2025 को निमिषा को फांसी दी जाएगी। यह खबर एक ऐलान नहीं, बल्कि एक डेडलाइन है, जिसके बाद एक भारतीय नागरिक की जिंदगी हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।

यह कहानी सिर्फ एक अपराध और उसकी सजा की नहीं है। यह सपनों के टूटने, धोखे, मजबूरी और एक माँ के अपनी बेटी को बचाने के लिए एक अनजान देश में किए जा रहे अथक संघर्ष की कहानी है। अब जब कानून के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं, तो क्या निमिषा प्रिया यमन की जेल से जिंदा बाहर आ पाएंगी? क्या ‘ब्लड मनी’ उनकी जिंदगी बचा सकती है? आइए, इस पूरे मामले की हर परत को खोलते हैं और जानते हैं कि आखिर उम्मीद की आखिरी किरण क्या है।

क्या है मौजूदा संकट और 16 जुलाई की डेडलाइन?

निमिषा प्रिया को 2017 में अपने पूर्व बिजनेस पार्टनर और एक स्थानीय यमनी नागरिक, तलाल अब्दो महदी की हत्या के मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी। अब यमन के अभियोजन निदेशालय ने जेल प्रशासन को 16 जुलाई को इस सजा पर अमल करने का आदेश दे दिया है। इस खबर के बाद से निमिषा के परिवार और उन्हें बचाने में जुटे सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच हड़कंप मच गया है।

एकमात्र उम्मीद: ‘ब्लड मनी’ और पीड़ित परिवार की माफी

यमन की इस्लामी कानूनी व्यवस्था, जिसे शरिया कहा जाता है, में हत्या के दोषी के लिए एक आखिरी रास्ता बचता है – पीड़ित परिवार की माफी। अगर मृतक का परिवार चाहे तो ‘दियाह’ यानी ‘ब्लड मनी’ (खून का मुआवजा) लेकर दोषी को माफ कर सकता है।

  • 10 लाख डॉलर की पेशकश: निमिषा के परिजन और ‘सेव निमिषा प्रिया काउंसिल’ जैसे समर्थक समूहों ने मिलकर 10 लाख डॉलर (लगभग 8.3 करोड़ रुपये) की भारी-भरकम राशि जुटाई है, जिसे महदी के परिवार को ‘ब्लड मनी’ के तौर पर देने की पेशकश की गई है।
  • परिवार के जवाब का इंतजार: लेकिन यह पैसा तभी काम आ सकता है, जब महदी का परिवार इसे स्वीकार करने और बदले में निमिषा को माफ करने के लिए तैयार हो। काउंसिल के सदस्य बाबू जॉन ने बीबीसी को बताया, “हम अभी भी उनकी माफी या कोई दूसरी मांगों का इंतजार कर रहे हैं। हम अब भी उन्हें बचाने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन आखिरकार परिवार को ही माफी देने के लिए राजी होना होगा।”

घरेलू काम करने वालीं निमिषा की मां, प्रेमा कुमारी, 2024 से यमन में ही हैं और अपनी बेटी को बचाने की इन आखिरी कोशिशों में लगी हुई हैं। यह एक माँ की अपनी बेटी के लिए एक ऐसे देश में लड़ाई है, जहाँ की भाषा और कानून दोनों उसके लिए पराए हैं।

वो 2017 की रात… आखिर क्या हुआ था?

यह पूरा मामला 2017 का है, जब तलाल अब्दो महदी का शव पानी की एक टंकी से बरामद किया गया था। जांच के बाद 34 वर्षीय Nimisha Priya को गिरफ्तार कर लिया गया।

  • आरोप: उन पर आरोप लगाए गए कि उन्होंने महदी को ‘बेहोशी की दवा की ज्यादा खुराक’ देकर मार डाला और फिर सबूत मिटाने के लिए शव के टुकड़े कर दिए।
  • अदालत का फैसला: 2020 में एक स्थानीय अदालत ने इन्हीं आरोपों के आधार पर उन्हें मौत की सजा सुनाई।

निमिषा के चौंकाने वाले दावे: ‘वह सिर्फ अपना पासपोर्ट वापस चाहती थी’

निमिषा ने हमेशा इन आरोपों को खारिज किया है। उनके वकील ने कोर्ट में जो दलीलें दीं, वे एक बिल्कुल अलग और दर्दनाक कहानी बयां करती हैं।

  • शारीरिक और मानसिक यातना: निमिषा के अनुसार, महदी उन्हें शारीरिक यातनाएं देता था।
  • आर्थिक शोषण: उसने निमिषा का सारा पैसा छीन लिया था और उनके क्लिनिक से होने वाली कमाई भी हड़प लेता था।
  • पासपोर्ट जब्त: महदी ने उनका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया था, जिससे वह यमन में एक बंधक बनकर रह गई थीं।
  • जान से मारने की धमकी: वह बंदूक दिखाकर उन्हें डराता और धमकाता था।

निमिषा के वकील के मुताबिक, वह महदी को मारना नहीं चाहती थीं। वह सिर्फ बेहोशी की दवा देकर उससे अपना पासपोर्ट वापस लेना चाहती थीं ताकि वह यमन से भाग सकें, लेकिन दुर्घटनावश दवा की मात्रा अधिक हो गई, जिससे महदी की मौत हो गई।

केरल से यमन तक का सफर: कैसे सपनों ने लिया खौफनाक मोड़?

यह कहानी 2008 में शुरू हुई, जब निमिषा प्रिया एक प्रशिक्षित नर्स के तौर पर बेहतर भविष्य की तलाश में केरल से यमन गईं।

  • नई शुरुआत: उन्हें राजधानी सना के एक सरकारी अस्पताल में नौकरी मिल गई। 2011 में उन्होंने टॉमी थॉमस से शादी की और 2012 में उनकी बेटी का जन्म हुआ।
  • आर्थिक परेशानियां: पति को यमन में कोई अच्छी नौकरी नहीं मिली, जिसके चलते आर्थिक दिक्कतें बढ़ने लगीं और 2014 में वह अपनी बेटी के साथ भारत लौट गए।
  • एक क्लिनिक का सपना और महदी की एंट्री: कम वेतन वाली नौकरी से परेशान निमिषा ने 2014 में अपना खुद का क्लिनिक खोलने का फैसला किया। यमन के कानून के तहत, ऐसा करने के लिए एक स्थानीय पार्टनर होना जरूरी था। यहीं पर तलाल अब्दो महदी की इस कहानी में एंट्री होती है, जो एक कपड़े की दुकान चलाता था।

निमिषा ने अपने दोस्तों और परिवार से पैसे उधार लेकर करीब 50 लाख रुपये जुटाए और अपना क्लिनिक शुरू किया। वह अपने पति और बेटी को वापस बुलाने की तैयारी ही कर रही थीं कि यमन में गृह युद्ध छिड़ गया और सब कुछ बदल गया।

‘उसने मेरी शादी की तस्वीरें चुरा ली थीं…’

क्लिनिक शुरू होने के बाद निमिषा के हालात सुधरने के बजाय और खराब होने लगे। दिल्ली हाई कोर्ट में उनकी मां द्वारा दायर याचिका में दिल दहला देने वाले आरोप लगाए गए हैं:

  • फर्जी शादी का दावा: महदी ने निमिषा के घर से उनकी शादी की तस्वीरें चुरा लीं और उनसे छेड़छाड़ कर यह दावा करने लगा कि उसने निमिषा से शादी कर ली है।
  • पुलिस की बेरुखी: जब निमिषा ने इसकी शिकायत पुलिस में की, तो पुलिस ने मदद करने के बजाय उलटे उन्हें ही छह दिन तक जेल में बंद कर दिया।
  • क्लिनिक पर कब्जा: महदी ने क्लिनिक के दस्तावेजों में भी छेड़छाड़ कर उसे अपना बता दिया और वहां से पैसे लेने लगा।

जब 2017 में निमिषा के पति थॉमस को यमन से खबर मिली कि ‘निमिषा को पति की हत्या’ के मामले में गिरफ्तार किया गया है, तो वह चौंक गए, क्योंकि निमिषा के पति तो वह खुद थे। यह इस बात का सबूत था कि महदी ने खुद को निमिषा का पति बताकर एक झूठी पहचान बना रखी थी।

भारत सरकार का रुख और आगे की राह

इस मामले पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने हर संभव मदद का आश्वासन दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था, “हमें निमिषा प्रिया को यमन में मिली सजा की जानकारी है। हम यह समझते हैं कि प्रिया का परिवार सभी मौजूद विकल्पों की तलाश कर रहा है। भारत सरकार इस मामले में हर संभव मदद कर रही है।”

लेकिन युद्धग्रस्त यमन में भारत का दूतावास नहीं है, जिससे सीधी मदद पहुंचाना बेहद मुश्किल है। अब जब फांसी की तारीख सिर्फ कुछ ही दिन दूर है, तो सारी उम्मीदें महदी के परिवार के फैसले पर टिकी हैं। क्या 10 लाख डॉलर एक बेटे की जान का मुआवजा हो सकते हैं? क्या यमनी कबीलाई समाज एक विदेशी महिला को माफ करेगा? और क्या एक माँ की गुहार यमन की सरहदों को पार कर अपनी बेटी की जिंदगी वापस ला पाएगी? इन सभी सवालों का जवाब 16 जुलाई से पहले मिलना जरूरी है, क्योंकि उसके बाद शायद बहुत देर हो जाएगी।

Scroll to Top