राधिका यादव हत्याकांड

सांस भी मर्जी से नहीं ले पाती थी राधिका… दोस्त ने खोली घर की कड़वी सच्चाई, ‘पापा ने ही नरक बना दी थी जिंदगी’

“भाई, मैंने कन्या वध कर दिया है। मुझे मार दो।”

ये वो खौफनाक शब्द हैं जो गुरुग्राम के एक पिता, दीपक यादव ने अपनी ही बेटी, अंतरराष्ट्रीय टेनिस खिलाड़ी राधिका यादव की हत्या करने के बाद अपने भाई से कहे थे। यह सिर्फ एक कबूलनामा नहीं है, बल्कि यह उस भयावह मानसिकता का प्रतिबिंब है जो ‘इज्जत’ और ‘मर्यादा’ के नाम पर अपनी ही संतान की बलि चढ़ा देती है। गुरुग्राम पुलिस ने आरोपी पिता को गिरफ्तार कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है, लेकिन इस हत्या के पीछे की वजहों को लेकर जो अफवाहें और कहानियां चल रही हैं, उसने एक नई बहस छेड़ दी है।

लेकिन अब, इस कहानी का एक और, शायद सबसे अहम और दर्दनाक पहलू सामने आया है। राधिका की सबसे करीबी दोस्त, हिमांशिका ने सामने आकर उन बंद दीवारों के पीछे घुटती एक जिंदगी की सच्चाई बयां की है, जो दुनिया की नजरों से छिपी हुई थी। उसकी बातें राधिका यादव हत्याकांड को एक नए और बेहद तकलीफदेह नजरिए से दिखाती हैं। यह कहानी सिर्फ एक हत्या की नहीं, बल्कि एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी के कुचले गए सपनों, घुटन और उस डर की है, जो ‘लोग क्या कहेंगे’ से पैदा होता है।

कौन थी राधिका यादव? एक इंटरनेशनल प्लेयर की छिपी हुई जिंदगी

दुनिया की नजरों में राधिका यादव एक सफल और उभरती हुई टेनिस खिलाड़ी थी। एक कोच के तौर पर भी बच्चे उसे बहुत पसंद करते थे। लेकिन उसकी दोस्त हिमांशिका, जो उसे पिछले 15 सालों से जानती थी, बताती है कि राधिका की असली जिंदगी बिल्कुल अलग थी।

एक ऐसी जिंदगी, जिसमें हर सांस पर पहरा था

हिमांशिका के मुताबिक, राधिका के घरवालों ने उसकी जिंदगी को ‘नरक’ बना दिया था। उन पर इतने सख्त नियम और पाबंदियां थीं कि उनका दम घुटता था।

  • 50 मीटर की दूरी भी कैद थी: हिमांशिका ने बताया, “उसकी एकेडमी घर से मात्र 50 मीटर की दूरी पर थी, लेकिन घर आने-जाने का समय बिल्कुल फिक्स था।” हर चीज के लिए उसे घरवालों को सफाई देनी पड़ती थी।
  • वीडियो कॉल पर सबूत: हद तो यह थी कि उसे वीडियो कॉल पर यह दिखाना पड़ता था कि वह किससे बात कर रही है। हिमांशिका पूछती हैं, “ऐसी घुटनभरी जिंदगी कौन चाहता है?”
  • सोशल मीडिया पर पाबंदी: राधिका को फोटो खींचने, वीडियो बनाने और रील्स का बहुत शौक था, लेकिन घरवालों की पाबंदियों के चलते उसने यह सब बंद कर दिया था। वह न तो अपनी तस्वीरें डालती थी, न ही ज्यादा रील्स शेयर करती थी।

यह एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो दुनिया के लिए एक स्टार थी, लेकिन अपने ही घर में एक कैदी की तरह जी रही थी, जिसकी हर हरकत पर नजर रखी जाती थी।

म्यूजिक वीडियो का वो सच, जो पाखंड को दिखाता है

जब राधिका की हत्या हुई, तो उसके एक म्यूजिक वीडियो को लेकर तरह-तरह की बातें बनाई गईं। लेकिन हिमांशिका ने इस पर एक चौंकाने वाला खुलासा किया। उन्होंने बताया, “उस कमर्शियल म्यूजिक वीडियो के लिए उसके पिता ही उसे छोड़ने आए थे।” यह एक बड़ा विरोधाभास है, जो दिखाता है कि समस्या शायद वीडियो बनाने से नहीं, बल्कि राधिका के अपने फैसले लेने और अपनी शर्तों पर जीने की इच्छा से थी। हिमांशिका कहती हैं, “उसके पैरेंट्स को ‘लोग क्या कहेंगे’ का फोबिया था। सोसाइटी का प्रेशर था।”

‘लव जिहाद’ का झूठा एंगल और चरित्र हनन की कोशिश

राधिका यादव हत्याकांड के बाद, कुछ लोगों ने इसे ‘लव जिहाद’ का एंगल देने की भी कोशिश की। यह एक ऐसी खतरनाक और झूठी अफवाह थी, जिसने राधिका के चरित्र पर सवाल उठाने की कोशिश की। लेकिन उसकी दोस्त हिमांशिका इस झूठ का पूरी मजबूती से खंडन करती हैं।

उन्होंने साफ कहा, “लव जिहाद का कोई सीन नहीं था। वो किसी लड़के से बात तक नहीं करती थी। लव जिहाद की बात करने वालों के पास क्या सबूत है?”

हिमांशिका बताती हैं कि राधिका पर शॉर्ट्स पहनने से लेकर लड़कों से बातचीत करने तक पर रोक-टोक थी। यह दिखाता है कि परिवार का नियंत्रण कितना गहरा था। ‘लव जिहाद’ का एंगल गढ़ना, शायद उस नियंत्रण को सही ठहराने और हत्या के असली कारण से ध्यान भटकाने की एक कोशिश थी।

तो आखिर राधिका का ‘गुनाह’ क्या था?

जब लव जिहाद नहीं, कोई अफेयर नहीं, तो फिर एक पिता ने अपनी ही बेटी की जान क्यों ले ली? हिमांशिका की बातों से इस सवाल का एक सीधा और दिल दहला देने वाला जवाब मिलता है।

राधिका का असली ‘गुनाह’ सिर्फ इतना था कि वह अपनी शर्तों पर जीना चाहती थी। वह एक स्वतंत्र, आत्मनिर्भर और आधुनिक विचारों वाली लड़की थी। वह अपने सपनों को जीना चाहती थी, अपनी पसंद के काम करना चाहती थी। हिमांशिका कहती हैं, “वो अपनी शर्तों पर जीती थी, यही उसके घरवालों को नहीं पसंद था। आखिरकार उन्होंने इन सब पर रोक लगाने के लिए उसकी हत्या कर दी।”

यह राधिका यादव हत्याकांड एक व्यक्ति द्वारा किया गया अपराध मात्र नहीं है। यह उस पितृसत्तात्मक और दकियानूसी सोच का परिणाम है, जो बेटियों को अपनी ‘इज्जत’ और ‘संपत्ति’ समझती है, एक स्वतंत्र इंसान नहीं। यह उस समाज का प्रतिबिंब है जो आज भी ‘लोग क्या कहेंगे’ के डर से अपने ही बच्चों की खुशियों और जिंदगियों का गला घोंट देता है।

दीपक यादव आज सलाखों के पीछे है और उसे अपने किए का एहसास भी है, जैसा कि उसने अपने भाई से कहा। लेकिन सबसे बड़ी सजा शायद यही है कि उसे अब पूरी जिंदगी इस बोझ के साथ जीना होगा कि उसने अपनी ही बेटी की सांसें इसलिए छीन लीं, क्योंकि वह अपनी मर्जी से सांस लेना चाहती थी। यह मामला एक चेतावनी है, एक अलार्म है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम अपने घरों में अपनी बेटियों को कितनी आजादी और कितना सम्मान दे रहे हैं।

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