केरल के प्रभावशाली मुस्लिम धर्मगुरु एपी अबूबकर मुसलियार अपने कार्यालय में।

कौन हैं 94 साल के एपी अबूबकर मुसलियार? जिनके एक फोन कॉल ने यमन में टाल दी भारतीय नर्स की फांसी!

जब यमन में मौत की सजा का सामना कर रही भारतीय नर्स निमिषा प्रिया की जिंदगी बचाने की सारी उम्मीदें लगभग खत्म हो चुकी थीं… जब फांसी की तारीख (16 जुलाई) सिर्फ 48 घंटे दूर थी… तब केरल से हजारों किलोमीटर दूर एक 94 वर्षीय धर्मगुरु के एक फोन कॉल ने पासा पलट दिया। यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है। इस घटना के बाद, पूरे देश में एक ही नाम की चर्चा है – एपी अबूबकर मुसलियार

एपी अबूबकर मुसलियार के दखल के बाद, यमन में निमिषा प्रिया की मौत की सजा को फिलहाल के लिए टाल दिया गया है। यह खबर उन सभी लोगों के लिए एक बड़ी राहत बनकर आई है जो निमिषा को बचाने के अभियान में लगे हुए थे। लेकिन यह घटना एक बड़ा सवाल भी खड़ा करती है – आखिर कौन हैं यह प्रभावशाली धर्मगुरु, जिनके एक फोन ने एक दूसरे देश की कानूनी प्रक्रिया में हलचल मचा दी? क्या है उनका रसूख और कैसे उन्होंने इस नामुमकिन से दिखने वाले काम को मुमकिन कर दिखाया? आइए, इस शख्सियत की हर परत को खोलते हैं।

कौन हैं एपी अबूबकर मुसलियार? एक आध्यात्मिक गुरु या एक ‘खिलाड़ी’?

एपी अबूबकर मुसलियार सिर्फ एक मौलवी नहीं, बल्कि अपने आप में एक संस्था हैं। उन्हें अनौपचारिक तौर पर भारत के ग्रैंड मुफ्ती‘ (Grand Mufti of India) की उपाधि भी दी गई है। सुन्नी सूफीवाद और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें जाना जाता है। हालांकि, महिलाओं पर दिए गए उनके कुछ बयानों को लेकर उनकी कड़ी आलोचना भी होती रही है।

अनुयायियों के लिए आध्यात्मिक गुरु’, आलोचकों के लिए ‘चंद्रास्वामी’

केरल यूनिवर्सिटी में इस्लामिक हिस्ट्री के प्रोफेसर अशरफ कडक्कल कहते हैं, “अपने अनुयायियों के लिए वह किसी आध्यात्मिक गुरु की तरह हैं। कुछ लोग तो यह भी मानते हैं कि उनके पास जादुई शक्तियां हैं।”

वहीं, सांस्कृतिक और राजनीतिक विश्लेषक शाहजहां मदापत उनकी तुलना 90 के दशक के चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी से करते हैं। वह कहते हैं, “अगर भारत में कोई भी चंद्रास्वामी से मुकाबला कर सकता है तो वह यह आदमी हैं। वह भी उसी तरह हैं। राजनीतिक और सामाजिक तौर पर बेहद अच्छी तरह जुड़े हुए हैं। वह एक पूरे खिलाड़ी हैं।” चंद्रास्वामी का उस दौर के राजनेताओं, खासकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव पर गहरा प्रभाव था, और एपी अबूबकर मुसलियार का रसूख भी कुछ वैसा ही माना जाता है।

निमिषा प्रिया केस में कैसे और क्या किया मुसलियार ने?

Nimisha Priya
निमिषा प्रिया पर 2017 में हत्या का आरोप लगा था, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। उनके पति टॉमी और बेटी अभी भी केरल में रहते हैं।

निमिषा प्रिया को मौत की सजा से बचाने का एकमात्र रास्ता था यमनी शख्स तलाल अब्दो महदी के परिवार से माफी मिलना, जिसकी हत्या के लिए निमिषा को दोषी ठहराया गया है। जब ‘सेव निमिषा प्रिया इंटरनेशनल एक्शन काउंसिल’ की सारी कोशिशें नाकाम हो रही थीं, तब उन्होंने एपी अबूबकर मुसलियार से संपर्क किया।

यमन में पुराने संपर्कों का इस्तेमाल

मुसलियार ने इस मामले में अपनी पुरानी दोस्ती और गहरे धार्मिक संपर्कों का इस्तेमाल किया।

  • शेख हबीब उमर से संपर्क: उन्होंने यमन में सूफी परंपरा ‘बा अलावी तरीका’ के प्रमुख और बेहद सम्मानित शेख हबीब उमर बिन हाफिज से संपर्क साधा। शेख हबीब उमर यमन के सभी गुटों और युद्ध में शामिल समूहों के बीच भी गहरा सम्मान रखते हैं।
  • मानवीय आधार पर अपील: मुसलियार के प्रवक्ता के अनुसार, “उनका यह हस्तक्षेप पूरी तरह से मानवीय आधार पर था। उन्होंने शेख हबीब को सिर्फ यह बताया कि शरिया कानून में ‘ब्लड मनी’ देकर माफी पाने का प्रावधान है।”

शेख हबीब उमर के दखल के बाद ही पीड़ित परिवार बातचीत के लिए तैयार हुआ और फांसी की तारीख को आगे बढ़ाया गया। यह एपी अबूबकर मुसलियार के अंतरराष्ट्रीय रसूख का एक बड़ा उदाहरण है।

कैसे बने इतने प्रभावशाली? एक संगठन से बगावत की कहानी

इस्लामिक हलकों में मुसलियार तब चर्चा में आए जब उन्होंने 1926 में बनी सुन्नी संस्था ‘समस्त केरल जमायतुल उलेमा’ की कट्टरपंथी सोच के खिलाफ बगावत की।

  • कट्टरपंथ का विरोध: प्रोफेसर अशरफ बताते हैं, “मुसलियार उस कट्टरपंथी सलफी आंदोलन के खिलाफ थे, जो मानता था कि मुसलमानों को अंग्रेजी नहीं सीखनी चाहिए क्योंकि यह ‘नरक की भाषा’ है। वे महिलाओं की शिक्षा के भी खिलाफ थे। मुसलियार ने इन सबके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।”
  • शिक्षा पर जोर: उन्होंने विदेशों से मिले चंदे का इस्तेमाल शिक्षण संस्थानों का एक बड़ा नेटवर्क बनाने में किया। आज उनके द्वारा स्थापित ‘नॉलेज सिटी’ जैसे संस्थान केरल में शिक्षा का एक बड़ा केंद्र हैं।
  • राजनीतिक पैंतरेबाजी: पारंपरिक रूप से सुन्नी संगठन इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) का समर्थन करते थे, लेकिन मुसलियार ने ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है’ की नीति अपनाते हुए वामपंथी दल CPM का समर्थन किया। इस वजह से लोग उन्हें मजाक में ‘अरिवल सुन्नी‘ भी कहने लगे (मलयालम में हंसिया को अरिवल कहते हैं, जो CPM का चुनाव चिह्न है)।

इस बगावत के कारण केरल के सुन्नी मुसलमान दो गुटों में बंट गए, और लगभग 40% सुन्नी मुसलमान एपी अबूबकर मुसलियार के साथ खड़े हो गए, जिससे उनकी ताकत और प्रभाव में भारी इजाफा हुआ।

महिलाओं पर विवादित बयान और आलोचना

जहाँ एक तरफ उनके मानवीय कार्यों की प्रशंसा होती है, वहीं दूसरी तरफ महिलाओं को लेकर उनके विचारों की कड़ी निंदा भी की जाती है।

  • एक से अधिक पत्नी का समर्थन: लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता डॉक्टर खदीजा मुमताज उनके उस बयान की निंदा करती हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि “पुरुषों की दूसरी पत्नी होनी चाहिए ताकि पहली पत्नी के पीरियड्स के दौरान पुरुष अपनी जरूरतों को पूरा कर सकें।” वह कहती हैं, “उनके महिलाओं पर ऐसे चिंताजनक विचार हैं। उनकी टिप्पणियां बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं।”

इन विवादों के बावजूद, डॉक्टर मुमताज यह भी स्वीकार करती हैं कि निमिषा प्रिया के मामले में उन्होंने जो किया, वह सराहनीय है। वह कहती हैं, “हमें यह भी स्वीकार करना चाहिए कि उन्होंने निमिषा प्रिया के मामले में अपने व्यापक संपर्कों का इस्तेमाल किया, बिना यह देखे कि वह गैर-मुस्लिम हैं।”

आतंकवाद के खिलाफ भी उठाई आवाज

एपी अबूबकर मुसलियार ने 26/11 मुंबई हमलों के बाद आतंकवाद के खिलाफ भी एक मजबूत रुख अपनाया था। उन्होंने मुसलमानों के एक बड़े महासम्मेलन का आयोजन करने में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसका मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समुदाय को यह संदेश देना था कि “आतंकवाद इस्लाम में हराम है।”

कुल मिलाकर, एपी अबूबकर मुसलियार एक बेहद जटिल और बहुआयामी शख्सियत हैं। वह एक प्रगतिशील शिक्षाविद हैं, एक कुशल आयोजक हैं, एक प्रभावशाली राजनीतिक खिलाड़ी हैं, और साथ ही महिलाओं पर अपने विचारों को लेकर एक विवादित हस्ती भी। लेकिन निमिषा प्रिया के मामले में उनके हस्तक्षेप ने यह साबित कर दिया है कि जब बात इंसानियत की हो, तो उनका रसूख और उनके संपर्क सीमाओं के पार भी काम करते हैं।

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