'नाच न जाने, आंगन टेढ़ा'- BJP का राहुल पर हमला

‘नाच न जाने, आंगन टेढ़ा’, BJP का Rahul Gandhi पर तीखा हमला, ओडिशा रैली को बताया ‘राजनीतिक पर्यटन’

राजनीति के अखाड़े में बयानों के तीर खूब चलते हैं, लेकिन जब बात चुनाव में हार-जीत की हो, तो ये तीर और भी पैने हो जाते हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा ओडिशा में की गई ‘संविधान बचाओ रैली’ के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने उन पर चौतरफा हमला बोल दिया है। बीजेपी ने इस रैली को राहुल गांधी का “राजनीतिक पर्यटन” करार दिया है और कहा है कि उनकी हालत आज ‘नाच न जाने, आंगन टेढ़ा’ जैसी हो गई है।

केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता धर्मेंद्र प्रधान ने इस रैली को “राहुल गांधी और कांग्रेस का आत्मसमर्पण” बताते हुए कहा कि यह ‘संविधान बचाओ’ नहीं, बल्कि ‘राहुल गांधी और कांग्रेस बचाओ’ समावेश था। बीजेपी ने कांग्रेस पर गरीबों और आदिवासियों के अधिकारों की अनदेखी करने का भी आरोप लगाया है। यह हमला सिर्फ एक रैली पर नहीं, बल्कि कांग्रेस की पूरी रणनीति और उसके नेतृत्व पर है। आइए, इस पूरे राजनीतिक घमासान को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि बीजेपी ने राहुल गांधी और कांग्रेस पर क्या-क्या आरोप लगाए हैं।

‘राजनीतिक पर्यटन’ और ‘आत्मसमर्पण’: क्यों भड़की बीजेपी?

भुवनेश्वर में आयोजित कांग्रेस की ‘संविधान बचाओ रैली’ का मकसद केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना और संविधान की रक्षा का संदेश देना था। लेकिन बीजेपी इसे एक अलग ही नजरिए से देख रही है।

Dharmendra Pradhan का सीधा अटैक

धर्मेंद्र प्रधान, जो खुद ओडिशा से आते हैं, ने इस रैली को लेकर कांग्रेस पर सबसे तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा:

  • “ओडिशा में कांग्रेस का कोई वजूद नहीं”: प्रधान ने कहा कि ओडिशा की जनता ने दशकों पहले ही Congress को नकार दिया था। राज्य में बीजेपी की जनहितैषी सरकार के प्रति लोगों का विश्वास कांग्रेस को परेशान कर रहा है। ऐसे में, जब राज्य में कांग्रेस का कोई अस्तित्व ही नहीं है, तो Rahul Gandhi का ओडिशा के गरीबों के हित की बात करना सिर्फ एक छलावा है।
  • “कांग्रेस बचाओ समावेश”: उन्होंने रैली के नाम पर ही सवाल उठाते हुए कहा कि यह संविधान को बचाने के लिए नहीं, बल्कि अपनी पार्टी और अपने नेता को बचाने के लिए की गई एक कोशिश थी।
  • “गरीबों का हक छीनने का इतिहास”: प्रधान ने कांग्रेस के इतिहास पर हमला करते हुए कहा कि कांग्रेस की सरकारों में दिल्ली से भेजा गया पैसा हमेशा बिचौलिए लूट लेते थे। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने हमेशा एससी, एसटी और पिछड़े वर्गों के हक को छीनकर अपने खास वोट बैंक को फायदा पहुंचाया है। उन्होंने एक बड़ी बात कहते हुए कहा, “गरीबों का हक और आदिवासियों की जमीन तभी तक सुरक्षित है, जब तक कांग्रेस सत्ता में नहीं है।”

यह बीजेपी का राहुल गांधी पर हमला सिर्फ बयानबाजी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है, जिसके तहत वह कांग्रेस को गरीब-विरोधी और आदिवासी-विरोधी साबित करने की कोशिश कर रही है।

‘नाच न जाने, आंगन टेढ़ा’: हार का ठीकरा EVM पर फोड़ने की कोशिश?

बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस अपनी चुनावी हार को स्वीकार करने के बजाय उसका ठीकरा लोकतांत्रिक संस्थाओं पर फोड़ रही है।

  • चुनाव आयोग पर सवाल: धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे राज्यों में करारी हार के बाद, राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे अब चुनाव आयोग और ईवीएम पर सवाल उठा रहे हैं।
  • आपातकाल की याद दिलाई: उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “हैरानी यह है कि संविधान बचाने का उपदेश वह कांग्रेस पार्टी दे रही है, जिसने लोकतंत्र का गला घोंटते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया था।” यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे बीजेपी अक्सर कांग्रेस को घेरने के लिए इस्तेमाल करती है।
  • ‘वोट चोरी’ का नया शिगूफा: प्रधान ने कहा कि राहुल गांधी की हालत ‘नाच न जाने, आंगन टेढ़ा’ जैसी हो गई है। बार-बार चुनावी हार के बाद, अब बिहार के आगामी चुनावों में अपनी संभावित हार को देखते हुए कांग्रेस पार्टी ‘वोट चोरी’ का एक नया शिगूफा लेकर आई है। उनका मानना है कि यह कांग्रेस की हताशा को दर्शाता है।

‘वोट की डकैती का प्रचलन कांग्रेस ने शुरू किया’ – दिनेश शर्मा

इस बहस में बीजेपी सांसद और उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा भी कूद पड़े। उन्होंने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ वाले बयान पर पलटवार करते हुए कहा:

“कांग्रेस वो पार्टी है जिन्होंने चुनाव में वोट की डकैती का प्रचलन शुरू किया… वे उसी रीत को वर्तमान में लागू करना चाहते हैं… यह वोटों की डकैती थी जिसे भाजपा शासनकाल में रोका गया है।”

दिनेश शर्मा ने आगे कहा कि बीजेपी के शासन में चुनावी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता आई है और संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का भरोसा बढ़ा है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद अब राहुल गांधी और विपक्ष को इस तरह का “प्रलाप” करने से बचना चाहिए। उन्होंने इसे “चुनाव से पहले हारने की रिहर्सल” बताया।

यह दिखाता है कि बीजेपी का राहुल गांधी पर हमला सिर्फ एक नेता तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी पार्टी एक सुर में कांग्रेस की रणनीति पर सवाल उठा रही है।

इस राजनीतिक घमासान के क्या हैं मायने?

इस पूरे घटनाक्रम के कुछ गहरे राजनीतिक मायने हैं:

  1. नैरेटिव की लड़ाई: बीजेपी यह नैरेटिव बनाने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस जब भी चुनाव हारती है, तो वह संस्थाओं पर सवाल उठाने लगती है। वहीं, कांग्रेस यह स्थापित करना चाहती है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं पर खतरा मंडरा रहा है।
  2. बिहार चुनाव पर नजर: बीजेपी नेताओं के बयानों में बार-बार बिहार के आगामी चुनावों का जिक्र आ रहा है। यह दिखाता है कि दोनों पार्टियां अभी से बिहार के लिए अपनी-अपनी पिच तैयार कर रही हैं।
  3. राहुल गांधी पर व्यक्तिगत हमला: बीजेपी लगातार राहुल गांधी को एक “नॉन-सीरियस” राजनेता के रूप में पेश करने की कोशिश करती है। उनकी रैलियों को “राजनीतिक पर्यटन” कहना इसी रणनीति का हिस्सा है।

कुल मिलाकर, ओडिशा की यह रैली सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह राष्ट्रीय राजनीति के अखाड़े में बदल गई है। बीजेपी ने इस मौके का इस्तेमाल कांग्रेस और राहुल गांधी को चौतरफा घेरने के लिए किया है, जबकि कांग्रेस इसे संविधान और लोकतंत्र पर हो रहे हमले के रूप में पेश कर रही है। अब देखना यह है कि जनता किसके नैरेटिव पर भरोसा करती है।

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