रविवार को रियो डी जनेरियो के म्यूजियम ऑफ मॉडर्न आर्ट में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया। यह मौका था 17वें ब्रिक्स लीडर्स समिट के आगाज़ का। यह तीन दिवसीय बैठक एक ऐसे समय में हो रही है, जब पूरी दुनिया अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। एक तरफ आर्थिक गुटबाजी और अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की उम्मीदवारी के साथ टैरिफ युद्ध की धमकियाँ हैं, तो दूसरी तरफ इजराइल-हमास संघर्ष जैसी भू-राजनीतिक अस्थिरता भी चरम पर है।
इस वैश्विक उथल-पुथल के बीच, ब्रिक्स (BRICS) जैसे संगठन की भूमिका और भी अहम हो जाती है। यह पीएम मोदी की ब्राजील की चौथी यात्रा है, और लगभग 60 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली राजकीय यात्रा भी होगी। इस साल के शिखर सम्मेलन का विषय ‘समावेशी और सतत शासन के लिए ग्लोबल साउथ सहयोग को मजबूत करना’ है, जो इस संगठन के मूल उद्देश्य को स्पष्ट करता है। भारत 2026 में ब्रिक्स की अध्यक्षता भी संभालने वाला है।
लेकिन ये सारी खबरें एक बुनियादी सवाल को जन्म देती हैं – आखिर ब्रिक्स क्या है? यह G7 या NATO जैसे संगठनों से कैसे अलग है? और सबसे महत्वपूर्ण, भारत के लिए इस मंच के क्या मायने हैं? आइए, इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से समझते हैं।
आखिर ब्रिक्स क्या है? ग्लोबल साउथ की एक बुलंद आवाज़
सरल शब्दों में, ब्रिक्स दुनिया की प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं – ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका – का एक अंतर-सरकारी गठबंधन है। इसका मुख्य उद्देश्य एक ऐसी दुनिया में ‘ग्लोबल साउथ’ (विकासशील और कम विकसित देशों) के हितों का प्रतिनिधित्व करना है, जहाँ पश्चिमी देशों के नेतृत्व वाले संस्थानों का दबदबा है।
दिलचस्प बात यह है कि ब्रिक्स कोई औपचारिक संगठन नहीं है। इसका न तो कोई चार्टर है, न कोई मुख्यालय (सचिवालय) और न ही इसके कोई बाध्यकारी नियम हैं। यह एक लचीला मंच है जो सदस्य देशों को आपसी सहयोग के लिए एक प्लेटफॉर्म प्रदान करता है।
एक आर्थिक विचार से राजनीतिक मंच तक का सफर:
इसकी कहानी 2001 में शुरू हुई जब अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं के लिए ‘BRIC’ (ब्राजील, रूस, भारत, चीन) शब्द गढ़ा। यह शुरुआत में केवल एक आर्थिक अवधारणा थी, लेकिन 2006 में इसने एक राजनीतिक मंच का रूप ले लिया। 2011 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद यह ‘BRIC’ से ‘BRICS’ बन गया।
2023 में इस समूह का एक ऐतिहासिक विस्तार हुआ, जिसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया को शामिल किया गया। यह विस्तार सिर्फ संख्या बढ़ाने के लिए नहीं था, बल्कि यह वैश्विक मंच पर ब्रिक्स के बढ़ते भू-राजनीतिक प्रभाव और महत्वाकांक्षा को दर्शाता है।
कैसे काम करता है ब्रिक्स?
भले ही ब्रिक्स का कोई औपचारिक ढाँचा न हो, लेकिन यह कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर मिलकर काम करता है। इनमें आर्थिक विकास, वित्तीय संप्रभुता (यानी पश्चिमी संस्थानों पर निर्भरता कम करना), जलवायु परिवर्तन और संयुक्त राष्ट्र (UN) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) जैसे वैश्विक संस्थानों में सुधार की मांग शामिल है।
इसके दो प्रमुख वित्तीय हथियार हैं जो इसे असली ताकत देते हैं:
- न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB): इसे अक्सर ‘ब्रिक्स बैंक’ भी कहा जाता है। इसका मकसद सदस्य देशों और अन्य विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे और सतत विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज देना है। अब तक, NDB ने 39 बिलियन डॉलर से अधिक के ऋण को मंजूरी दी है, जो इसे विश्व बैंक और IMF के एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करता है।
- आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (CRA): यह 100 बिलियन डॉलर का एक फंड है जिसे सदस्य देशों को अचानक मुद्रा संकट या भुगतान संतुलन की समस्याओं से बचाने के लिए बनाया गया है। यह व्यवस्था सदस्य देशों को वित्तीय झटकों से निपटने में मदद करती है और उन्हें IMF जैसी संस्थाओं की कठोर शर्तों वाली मदद पर निर्भर रहने से बचाती है।
अब ब्रिक्स का दायरा और भी बढ़ रहा है। नाइजीरिया, कजाकिस्तान और वियतनाम जैसे ‘साझेदार देश’ भी एक नई श्रेणी के तहत शिखर सम्मेलनों में भाग ले रहे हैं, जो इसके बढ़ते प्रभाव का संकेत है।
महाशक्तियों का टकराव: BRICS बनाम G7 और NATO
अक्सर यह सवाल उठता है कि शक्ति के मामले में ब्रिक्स कहाँ खड़ा है, खासकर जब इसकी तुलना G7 और NATO जैसे शक्तिशाली पश्चिमी गुटों से की जाती है।
BRICS बनाम G7: आर्थिक शक्ति की जंग
G7 दुनिया के सात सबसे उन्नत औद्योगिक देशों – अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, जापान, इटली और कनाडा – का समूह है। इन दोनों गुटों की ताकत और कमजोरियां बिल्कुल अलग-अलग हैं।
- ब्रिक्स की ताकत: ब्रिक्स देशों के पास दुनिया की लगभग आधी आबादी (लगभग 47%) और क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 40% हिस्सा है। यह इसे एक बहुत बड़ा आर्थिक और जनसांख्यिकीय poids (वजन) देता है। इसके अलावा, सदस्य देशों के पास प्राकृतिक संसाधनों और ऊर्जा आपूर्ति का विशाल भंडार है।
- G7 की ताकत: वहीं दूसरी ओर, G7 देश प्रति व्यक्ति आय, तकनीकी क्षमता और संस्थागत प्रभाव के मामले में कहीं आगे हैं। IMF, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन जैसे वैश्विक वित्तीय संस्थानों पर उनका गहरा नियंत्रण है, जो उन्हें दुनिया की आर्थिक नीतियों को प्रभावित करने की अपार शक्ति देता है।
इसे हम ‘जनसंख्या की शक्ति’ बनाम ‘पूंजी और तकनीक की शक्ति’ की लड़ाई के रूप में देख सकते हैं। ब्रिक्स का बढ़ता आर्थिक आकार G7 के दशकों पुराने प्रभुत्व को सीधी चुनौती दे रहा है।
BRICS बनाम NATO: जमीन-आसमान का फर्क
NATO (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) से ब्रिक्स की तुलना करना सही नहीं है, क्योंकि दोनों के उद्देश्य पूरी तरह से अलग हैं।
- NATO: यह एक सैन्य गठबंधन है जिसका एक सामूहिक रक्षा ढाँचा है। इसका सिद्धांत है ‘एक पर हमला, सब पर हमला’। नाटो देशों का संयुक्त सैन्य खर्च दुनिया के किसी भी अन्य गुट से कहीं ज्यादा है। इसका पूरा ध्यान सैन्य समन्वय और सुरक्षा पर है।
- BRICS: इसके विपरीत, ब्रिक्स का ध्यान पूरी तरह से आर्थिक सहयोग, व्यापार और विकास पर है। यह कोई सैन्य गठबंधन नहीं है और न ही इसके सदस्य देश सैन्य समन्वय के लिए प्रतिबद्ध हैं।
इसलिए, जहाँ NATO एक सैन्य महाशक्ति है, वहीं ब्रिक्स एक उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति है जो वैश्विक व्यवस्था में शक्ति का संतुलन बनाना चाहती है।
भारत की भूमिका: संतुलन और नेतृत्व का केंद्र

ब्राजील में हो रहे इस शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के मुख्य एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं। इसमें आतंकवाद के खिलाफ एक एकीकृत रुख, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिए विकसित देशों से वित्तीय मदद (क्लाइमेट फाइनेंस), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में सहयोग बढ़ाना और डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना शामिल है।
ब्रिक्स में भारत की स्थिति बेहद महत्वपूर्ण और रणनीतिक है:
- आर्थिक शक्ति: भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है और सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है। यह ब्रिक्स को एक बड़ी ताकत देता है।
- लोकतांत्रिक संतुलन: एक जीवंत लोकतंत्र के रूप में, भारत इस समूह में चीन के बढ़ते प्रभाव के लिए एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में काम करता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रिक्स किसी एक देश के एजेंडे पर न चले।
- पश्चिम के साथ संबंध: भारत ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण सदस्य होने के साथ-साथ अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भी मजबूत संबंध बनाए रखता है। यह भारत को एक पुल की भूमिका निभाने का अवसर देता है।
न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) में भारत का नेतृत्व और समान विकास पर इसका ध्यान, इसकी रणनीतिक महत्ता को और बढ़ाता है। जैसा कि पीएम मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था, “एक संस्थापक सदस्य के रूप में, भारत उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में ब्रिक्स के लिए प्रतिबद्ध है। हम सब मिलकर एक अधिक शांतिपूर्ण, न्यायसंगत, लोकतांत्रिक और संतुलित बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था के लिए प्रयास करते हैं।”
संक्षेप में, ब्रिक्स सिर्फ कुछ देशों का एक समूह नहीं है, बल्कि यह एक बदलती हुई दुनिया का प्रतीक है, जहाँ शक्ति का केंद्र पश्चिम से पूर्व और उत्तर से दक्षिण की ओर खिसक रहा है। और इस नई विश्व व्यवस्था के निर्माण में भारत एक केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पूरी तरह तैयार है।